Thursday, October 17, 2013

पर्वों पर जनहित में जारी

हम व्यर्थ ही प्रकृति को कहर का दोषी ठहराते हैं जिस तरह हम प्रकृति से खिलवाड़ करते है इस विषय पर आत्मावलोकन कर खुद महसूस कर सकते हैं ....दुर्गा पूजा बंगालियों का प्रमुख त्यौहार है और कलकत्ता में धूमधाम से मनाया जाता है l
हमारे एक बंगाली बड़े भ्राता सरीखे मित्र से जब बात हुए तो वे बहुत दुखी थे उनका मानना था कि अब प्रकृति पर विभिन्न तरीकों से बहुत चोट पहुँच रही है तो हमें अपने को बदलना चाहिए l लकीर के फकीर कि तरह हम समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुँह नहीं मोड़ सकते l गलत को नकार, विवेक से सही के बदलाव को स्वीकारने की अब हम में समझ और क्षमता है l उन्होंने बताया कि मैं मूर्ति विसर्जन करने नहीं जाता ...मुझसे नहीं देखा जाता ...जिसकी नव दिन सजा संवराकर भक्तिभाव से पूजा करो उसे जैसे तैसे नदी में बहा दो l जबकि विसर्जन हर शहर में होता है पर उतना पानी सब जगह नहीं होता और खण्डितमूर्ति और पूजन सामग्री किनारे पर रह जाती है जो जल और थल दोनों को गन्दला करती है औरउस मूर्ति और पूजन सामग्री का अपमान भी l आज fb पर ही दिखा की दुर्गा माता को किसी धनाड्य ने १६ करोड़ का ५.५ लाख किलो घी चढ़ाया है l तस्वीर में लोग उसपर खड़े दिख रहे हैं l जब ये सब पानी में जायेगा तो पानी को कितना प्रदूषित करेगा और स्थल कोभी......

कृपया आगामी वर्ष तक इसपर विचार कर लें ..वर्ना जाने कितने सुनामी, फाइलीन और केदार नाथ जैसी विपत्तियाँ हमें धर दबोचेंगीं l ............जनहित में जारी......आदर्शिनी श्रीवास्तव , मेरठ


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