Friday, June 3, 2016

गीत -- परिवर्तन
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परिवर्तन तो प्रकृति की सहज प्राणधारा है
जिसपर हमने वर्तमान को शनैः-शनैः वारा है

इस प्रकृति में सहज भाव से
पल-पल बहते जाना
या केवल निष्काम भाव से
कर्म को करते जाना
सम्हल-सम्हल कर बदलावों को
 खुलकर स्वीकारा है
जिसपर हमने वर्तमान को शनैः-शनैः वारा है

हम न जाने कब अपना मन
ही चुपके से बदलें
फिर पिछले मन को सींचें
या बदलेपन का सुख लें
हर क्षण, हर पल बदल रहा
परिवर्तन बंजारा है
जिसपर हमने वर्तमान को शनैः-शनैः वारा है

परिवर्तन में नवरसता,
नवचेतन, नवआकर्षण
सुख में दुःख का दुःख में सुख का
शीतल सा जलवर्षण
भावों जैसा व्यभिचारी
ये धुँधला-उजियारा है
जिसपर हमने वर्तमान को शनैः-शनैः वारा है
........आदर्शिनी श्रीवास्तव ........

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