गीत
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क्या हुआ तटबंध क्यों फिर आज बौने हो गए
पीर तो उसकी थी लेकिन नैन क्यों मेरे झरे
ये ह्रदय की वेदना है
या कोई संत्रास है
हर तरफ क्यों एक जैसी
छटपटाती प्यास है
आज कितनों के हज़ारों ज़ख़्म हो बैठे हरे
पत्थरों के बीच भी तो
छलछलाता नीर है
हो भले मरुथल वहाँ भी
बह रहा समीर है
एक सरवर ही उपेक्षित हैं सभी सरवर भरे
ज़िन्दगी के विष को जिसने
मधु समझकर पी लिया
इन विसंगति में हँसा जो
वो समझ लो जी लिया
शीत घन के साथ बिजली है समझ से भी परे
.......आदर्शिनी श्रीवास्तव ......
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