Thursday, September 8, 2016

कविता ----उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी

उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी
जिसके दुःख से
तड़प रहे थे कातर स्वर
स्तब्ध खड़े थे
दिग्दिगंत निशब्द वहाँ
कितना निष्ठुर है
 लीला करने वाला
उस मालिन को कुछ था
अपना होश कहाँ
उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी
ज्वर से पीड़ित देंह
अशक्त ढीला-ढीला
मौन भी भय से
मौन खड़ा पीला-पीला
अवचेतन में जो भी शब्द
ठहरते मुख पर
दर्द में डूबे लावों से
गिरते थे सब पर
सब चुप थे पर कहते थे
वो कैसी होगी ?
उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी
भीतर गाढ़ा रक्त हुआ
दुःख से तन का
क्रम साँसों का
काया में रह रह अटका
निश्छल बालापन था
नैनों में आता
छुप-छुप कर
खारे घट को था लुढ़कता
आवाक् खड़े थे
सब ढाढस देने वाले
उस बिटिया की वो बिटिया दुनियाँ ही थी

.......आदर्शिनी श्रीवास्तव..........












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