नवजागृति का है संदेसा
अवरोधों का बढ़ जाना
मन के संकल्पों को किसने
सुख के क्षण में पहचाना
स्वप्न-नीड़ को छोड़ बटोही
उड़ ले नील गगन में तू
अब रच तू तारों का मण्डप
रह ले दीप-भवन में तू
मणि रत्नों से भरा पड़ा है
ह्रदय देश का तहख़ाना
हारे मन की रोक रागिनी
उठ प्रस्तर से टकराने
या उर्वर धरती को बंजर
करके रख ले सिरहाने
भीतर के हठ के स्रोतों को
बह जाने दे मनमाना
श्रीहीन इस मुखमण्डल को
धो ले रवि की लाली से
रीती के दे जो मन -वीथी
कुछ मत चख उस प्याली से
मतवाले अहि को जो छेड़े
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