मेंरी जल से हुई है गागर भारी
हेरी सखी ...हम दोनों ही हैं सुकुमारी
हाँ SSS मेरी जल से हुई.....l
छलिया है वो ताक लगाए
मटकी फोड़ें मुझको भिगाए
ऐसा है ब्रजनार वो नटखट
लोग कहें.... ये हैं त्रिलोकी त्रिपुरारी
हाँ SSS मेरी जल से हुई.....l
माखन देख के जिया जुड़ावे
क्षीर देख घर बाहर धावे
मोह भरे खीजत हैं यसुदा
ओरे कान्हा.... काहे सताओ महतारी
सखी जरा समझाओ पैजनियाँ
आवेगा कस भरूँगी पनियाँ
छोरा निसदिन नाच नचावे
हे री सखी..... कैसे पुकारूं गिरधारी
तुरत हुआँ पर आए कान्हा
गगरी उठा सर धर दिए कान्हा
लोचन बंकिम मार कटारी
गोपी रहीं... भौचक अचंभित मनहारी
....आदर्शिनी श्रीवास्तव....
वाह वाह आपकी आवाज़ में सुनते तब और आनन्द की अनुभूति होती
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