हैं मन से मन का कुछ बंधन
या बस मुझको बहलाया है
इस सरल सूक्ष्म मन चेतन को
आ होले से सहलाया है
उत्फुल्ल आनंदित हो बैठा
जो मन था अबतक बुझा बुझा
तुम दिखे सुखद अहसास जगा ....
तेरे आने से ही पहले
वायू का झोंका आ बोला
ठहरो-ठहरो कुछ सहज रहो
आकर कानों में रस घोला
पीछे मुड़ कर तो देख जरा
आता है तेरा कोई सगा
बह पल उस क्षण ही खास हुआ ...
वो देखो तुझसा ही कोई
धीमे क़दमों से आता है
वो हाथ हिलाता नहीं मगर
धड़कन का शोर सुनाता है
सोंधी सोंधी माटी महकी
मन-मृग ने चौकड़ भर डाली
मुखड़े पर एक मधुहास खिला
अब ही मेरा प्रस्थान हुआ
कैसे तुमको मालूम हुआ
आँखों के सम्मुख देख तुम्हे
तनिक मुझे विशवास हुआ
मन में जागा एक कौतुहल
था शब्द बिना ही कोलाहल
ये उर तेरा आवास हुआ
......आदर्शिनी श्रीवास्तव
अति सुंदर गीत
ReplyDeleteके के बेदिल