सुधियों में आते हो अनुराग जताते हो
अपने मृदु बैनों से मुझको भरमाते हो
संदली बयार चली सुबह लेके साज़ चली
एक तू ही जिसकी न खोज न ख़बर है
दिन ढला साँझ हुई कुम्लाई छुईमुई
खोया कहाँ प्यार सूना जीवन सफ़र है
हर घड़ी पहर हर पल मानस पर छाते हो
अपने मृदु बैनों से मुझको भरमाते हो
कभी लगे दर पे तुम आये हो मुस्कान लिए
दौड़ी चली आई सब भूल अगुआई में
जैसे चंदा आये फिर घन बिच जाए
तुम दिखे नहीं झुँझलाई प्रिय निठुराई में
एक झलक दिखाने को कितना तरसाते हो
अपने मृदु बैनों से मुझको भरमाते हो
कभी पास बैठे जो हम हाथ में तुम हाथ लेके
आँखों में फिर मधु सोमरस भर लेते हो
फिर सुध-बुध रहे न ही कुछ होश रहे
जाने कैसे-कैसे मदहोश कर देते हो
क्यों प्रेम अगन मन की रह रह दह्काते हो
अपने मृदु बैनों से मुझको भरमाते हो
.....आदर्शिनी श्रीवास्तव......
अपने मृदु बैनों से मुझको भरमाते हो
संदली बयार चली सुबह लेके साज़ चली
एक तू ही जिसकी न खोज न ख़बर है
दिन ढला साँझ हुई कुम्लाई छुईमुई
खोया कहाँ प्यार सूना जीवन सफ़र है
हर घड़ी पहर हर पल मानस पर छाते हो
अपने मृदु बैनों से मुझको भरमाते हो
कभी लगे दर पे तुम आये हो मुस्कान लिए
दौड़ी चली आई सब भूल अगुआई में
जैसे चंदा आये फिर घन बिच जाए
तुम दिखे नहीं झुँझलाई प्रिय निठुराई में
एक झलक दिखाने को कितना तरसाते हो
अपने मृदु बैनों से मुझको भरमाते हो
कभी पास बैठे जो हम हाथ में तुम हाथ लेके
आँखों में फिर मधु सोमरस भर लेते हो
फिर सुध-बुध रहे न ही कुछ होश रहे
जाने कैसे-कैसे मदहोश कर देते हो
क्यों प्रेम अगन मन की रह रह दह्काते हो
अपने मृदु बैनों से मुझको भरमाते हो
.....आदर्शिनी श्रीवास्तव......
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