फिर मेरी अंजुमन को सजाता हुआ
और तसव्वुर का दर खटखटाता हुआ
कौन आया है दिल में समाता हुआ
ख़ाब में नींद में गुनगुनाता हुआ
एक अहसास मूरत में ढलने लगा
पास आकर गले मिल के कहने लगा
जो हक़ीक़त में सम्भव न अबतक हुआ
हो गया ख़्वाब में सब भुलाता हुआ
स्याह रातों में महताब शरमा गया
चाँद से रूप उसका जो टकरा गया
प्यार पर है निछावर जमीं आसमां
आया तारों में वो झिलमिलाता हुआ
फिर अँधेरों की बदरी सिमटने लगी
एक गुलाबी किरण से चटकने लगी
साथ जो था रहा रात भर ख्वाब में
चल दिया हाथ सुबह छुड़ाता हुआ
....आदर्शिनी श्रीवास्तव ......
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