Sunday, March 8, 2015

.कविता .....केवल तुमको अपना पाया

राहों में कई लोग मिले
और बिछड़ गए फिर
इस पंछी ने तुम में
एक बसेरा पाया
सच कहती हूँ केवल 
तुमको अपना पाया
तमिस्र निशा की नीरवता
में खोये खोये
एक उजियार न जाने कहाँ से
छनकर आया
मन का शावक दौड़ रहा है
उसी दिशा में
दूर बहुत है अभी उसे
वो छूना पाया
सच कहती हूँ केवल
तुमको अपना पाया
इस पंछी ने तुममे
एक बसेरा पाया
........आदर्शिनी श्रीवास्तव .......

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