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हर कलाकार के भीतर
छुपा है एक जोकर
कभी वो ह्रदय का पर्दा दोनों हाथों से हटा
अपना सर निकाल थोडा झाँक लेता है
कभी हमारी नाक पर रख देता है
अपनी वीभत्स हँसी के साथ
एक छोटी लाल गेंद
खुश हैं सब , वो रो देता है
लोग अपनी जीत पर ख़ुशी से
तालियाँ पीटते हैं
सुबकता है वो
लोग समझते हैं जोकरगिरी ..
स्थिति .....
दो समीकरणों की तरह ....
अंक के स्थान पर रखता मान
मान को रौंदता अभिमान
वो पन्ना थोडा दहकता है
जहाँ-जहाँ हल हो रहें है
ये समीकरण
फिर उभरने लगते हैं
अक्षर की जगह पर अंक
प्रतिवाद पर वाद की एक धीमी खनक ....
मौन चीख को.... दबाती
एक और मौन आवाज़
नकारती हुई उस बीज के गुण को
....जो रोपेंगे वही पायेंगे
धन और ऋण का परिणाम सदैव ऋण
बेहतर है ऋण से ऋण का मिलाप
जिसे नहीं छलता समर्पण को दंभ
नहीं होता नए समीकरण का आरम्भ
और नहीं उपजता
नाक पर लाल गेंद रखता
एक और जोकर
......आदर्शिनी श्रीवास्तव .......
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