सासू माँ
अभी कुछ समय पहले ही तो मुलाकात हुई थी l लगभग सवा वर्ष पहले दस दिन मेरे पास रहकर गईं थी वो l उनकी पोती का ब्याह जो था l किन्तु आज
आभास होने लगा है कि एक महापुराण पर धूल जमने लगी है. जिसकी परत लाख पोछने
पर भी मोटी होती जायेगी l जिसने अब तक थोडा भी उस पुराण का अध्ययन कर लिया
या थोडा भी समझ लिया तो वह अवश्य ही अपने मनोभाव से इस भवसागर को पार कर
जायेगा l उस पुराण के अमृत वचन, उसकी छाँव, उसका ज्ञान, उसका निर्देश, दूरदर्शिता,
समस्याओं का निवारण, तपती देह पर शबनमी फुहार है, उस ग्रंथ का सानिध्य
कंटकाकीर्ण पथ को रानीखेत का सुन्दर बाग करने में समर्थ है.
आज
उनकी नज़र में मैं उनकी बहू नहीं बल्कि किसी परिचित इंजीनियर के घर में
ब्याही गई कन्या थी फिर भी चरण स्पर्श के समय उनकी स्नेह पूरित डबडबाई
आँखें, आशीर्वचन और पूरा खुला करतल सर पर महसूस कर इस रामायण से लिपटने को
छटपटा गया l उनका कभी जागृत तो कभी सुप्त होता स्मरण बूढ़े को बच्चा, छोटे
बच्चे को पिता और शादी के घर को सौरी का घर बना रहा था . सजी संवरी नई
नवेली पौत्र वधू उन्हें सद्यः प्रसूता माँ लग रही थी, कभी औषधि तो कभी अन्न
त्याग का हठ, चालीस पचास वर्ष पुराने दिवंगत स्वजनों को स्मरण कर विलाप,
वर्षों पहले स्वीकार कर चुकी अपने वैधव्य के बावजूद
अपने प्राणनाथ कि प्रतीक्षा...., वो और कोई नहीं मेरी सासू माँ हैं, उनकी
एक-एक क्रिया उनके प्रति कभी माँ जैसा ममत्व जगा देती और उन्हें दुलारने का
मन करता और कभी उनकी ओर सबकी विवशता पर मन सिहर जाता और आँखें द्रवित हो
जातीं l
अपने बचपन से जवानी तक के सफर में अपना मायका अपनी माँ
याद आने लगीं, याद आने लगी उनकी स्नेहपूर्ण फटकार, गोदी का झूला, आँगन में
बिछी खाट पर अनमोल लोरियाँ, हर बच्चे के लिए रातों रात जगती आँखें, कभी
मनगढंत तो कभी इतिहास और अध्यात्म को खंघालती सदराह दिखाती सशक्त करती
कहानियां, ऐसी होती है एक माँ और एक महिला.
वो महापुराण तो
चिरंजीवी है......., कोई संशय नहीं... फिर भी ......, फिर भी निरंतर समय
कि गर्द झाड़ते, प्यार, दुलार, श्रद्धा, सम्मान, संरक्षण देते उसे और अधिक
दिन बहुत दिन सुरक्षित रखा जा सकता है l अपना साया बहुत दिन बनाए रखना हम सब पर माँ l ...............आदर्शिनी...........२/२/०१३
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