नेह बंध स्वीकार करो या
बंद करो ये माया जाल
सौगंध लेकर के बारम्बार
विचलित करता ह्रदय अपार ,
प्रत्यक्ष कभी दिखते साकार
फिर मिथ्या का ढोता भार,
नेह-बंध स्वीकार करो या
बंद करो ये मायाजाल,
बंद करो ये माया जाल
सौगंध लेकर के बारम्बार
विचलित करता ह्रदय अपार ,
प्रत्यक्ष कभी दिखते साकार
फिर मिथ्या का ढोता भार,
नेह-बंध स्वीकार करो या
बंद करो ये मायाजाल,
मधु का पिंगल प्याला देकर
क्यों करते हो तिरस्कार ?
भीगी-भीगी पलकों को अपनी,
गीली अलकों की देकर ओट,
ह्रदय-पीर को नीर बताकर
ह्रदय मौन करता चीत्कार,
मधु का पिंगल प्याला देकर
क्यों करते हो तिरस्कार?
क्यों करते हो तिरस्कार ?
भीगी-भीगी पलकों को अपनी,
गीली अलकों की देकर ओट,
ह्रदय-पीर को नीर बताकर
ह्रदय मौन करता चीत्कार,
मधु का पिंगल प्याला देकर
क्यों करते हो तिरस्कार?
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