कहा नहीं कलेजे में दबाए रखा,
तुम्हारा नाम जमाने से छिपाए रखा,
कोशिश लाख हुईं तोहफे का राज़ खोल दूँ,
मुस्कुरा कर राज़ को राज़ बनाये रखा,
करीब आया नहीं और छूकर चला गया,
चुपके से अपनी जगह बना कर चला गया,
हटा नहीं घडी भर के लिए ज़हन से वो,
आज एक बार फिर वो छेड़ कर चला गया,
सुना है खामोशियाँ दिल की जुबान होती हैं,
किसी की शायरी किसी की पहचान होती हैं,
समझने वाले के लिए कुछ भी छिपा नहीं रहता,
कलम की जुबान भी क्या खूब जुबान होती है,
मेरी नज़रें तुम्हें गर देखने की भूल कर जाए,
लब सोच पुराना कुछ हँसी की भूल कर जाए,
देख कर सोच मत लेना मेरा इशारा तुमपर है,
तेरा दिल प्यार करने की कहीं न भूल कर जाए,
दिल से तकरार करती हूँ,मुझे तुम याद आते हो,
खुद से जब प्यार करती हूँ मुझे तुम याद आते हो,
करूँ कुछ या जिधर देखूँ तेरा एहसास होता है,
निहारूं खुद को दर्पण में मुझे तुम याद आते हो,
जब जा रहे हो तुम नज़र भर देख लेने दो,
बसा लूं मैं निगाहों में जरा सहर तो होने दो,
चले जाना अभी तो कुछ पहर का वख्त बाकी है,
बह न जाए मेरा काजल ज़रा धड़कन तो थमने दो,
चुप रही होठों को दबाए रखा,
ReplyDeleteतुम्हारा नाम जमाने से छिपाए रखा
Excellent poetry ...
धन्यवाद प्रमोद कुमार कुश जी
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