पुस्तक धारण करने वाली
ब्रह्म विचार की तू रखवारी
श्वेत वसन में पद्म विराजे
वीणा के दंडक संग साजे
करहु कृपा है लघु मति मेरी
जयतु जयतु जय मात भारती
तू असुरासुर से पूजित है
तेरी नाद से जग पूरित है
मंगल तू सबका करने वाई
विद्या स्वर तू देने वाली
संगीत सुरों में भर दे मेरी
जयतु जयतु जय मात भारती
स्वर व्यंजन में तू विराजे
राग रागिनी में यू साजे
उर में मात प्रकाश भरो तुम
मन निर्मल कर प्रेम भरो तुम
करें सुर नर मुनि स्तुति तेरी
जयतु जयतु जय मात भारती
तू जो चाहे ग्रंथ रचूँ
सामवेद से छंद कहूँ
चन्द्र प्रभा तू लगे सुनीता
वीणा से झंकृत हो गीता
प्रेम मगन देखूँ मूरत तेरी
जयतु जयतु जय मात भारती
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