अमर नही ये अगर हुआ, फिर होगा कौन ठिकाने पे,
मेरे आँचल कि छाया बिन गीत अंक को ढूंढेगा,
किसके हाथ लगेगा ये कुछ कह सकती नहीं भरोसे से,
कभी सोचती हूँ मै, ये धरोहर किसको दे जाऊँगी,
पात्र कोई समझे जो इसको उसके हाथ थमाउंगी,
पीले पन्नों के शब्दों को शायद वो श्वेत बिछौना दे,
न रहकर भी उस रक्षक का मै उपकार चुकाऊँगी
गीतों कि जैसे पाँत बढ़ रही,जीवन छोटा होता जाता है,
मेरे निचुड़े मन के कारण, इनसे प्रेम सा होता जाता है,
रोज़ नया एक शिशु जन्मता उदर से मेरे भावों के,
वात्सल्य छोड़ जब जाना चाहूँ तो मन विचलित हो जाता है,
हाथोंहाथ लिया कुछ ने और कुछ ने इसको धिक्कार दिया,
सही प्रयोजन था जिसका उसने इसपर उपकार किया,
उर से जो बहता है सब अंकित मैं करती जाती हूँ,
ये निर्णय पाठक ही लें, कितना भावों को विस्तार दिया,
कभी सोचती हूँ मैं ये, वीतरागी तो हूँ मै लेकिन,
गीत मोह में फंसकर, अंत समय दुर्बल हो जाऊँगी,
सही मार्ग दे माँ मुझको, लिपटूं उससे पर निर्लिप्त रहूँ,
तुझसे प्रेरित गीतों को भगवन तेरे सुपुर्द कर जाऊँगी,
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