Friday, October 28, 2011

......मालूम नहीं उनको हम गुजरें हैं किधर से ........

आँखों में दर्द का सैलाब,होठ कुछ कहने को बेताब,
शायद मेरी ही तरह तुम्हे भी लगे ज़ख्म गहरे हैं,
खुद की तकलीफ बयां करने की आदत नहीं तुम्हे,
काँधे का दूँ सहारा इस पर भी तो लगे पहरे हैं,

कदम बढ़ रहे हैं मेरी ओर हम समझ रहे हैं,
फासला दरमियाँ रहे अनजान बन पीछे खिसक रहे हैं,
मिलने की ख्वाहिश है इस पर हमने बात टाल दी,
याद आ गए वो दर्द जो अबतक हमें तोड़ रहे हैं,

दिल मोहब्बत करने की फिर गलती ना कर जाये,
प्यार को ठुकराना भी तो आसान नहीं है,
क़ुबूल करूँ तोहफा जिद थी उनकी बहुत लेकिन,
कह दिया तुम में जो बात है दौलत में नहीं है,

मालूम नहीं उनको हम गुज़रे हैं किधर से,
कैसे कहूँ हदतक मोहब्बत कर चुकी हूँ मैं,
दिल लेना और देना कोई दिल्लगी नहीं है,
एकबार जिसका होना था उसकी हो चुकी हूँ मैं,


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