व्यापाश्रय की छोड़ प्रतीक्षा आज कलम कुछ बोल,
कल्पनाएँ पथराई क्यूँ हैं,
भाव, शब्द घूंघट में क्यूँ है,
अलसाई ऊँगली के मध्य छिपी तू,
शब्दों में विहान मत खोज,जो मन में हो वो बोल,
व्यापाश्रय की छोड़ प्रतीक्षा आज कलम कुछ बोल
सकल सर्जन की उत्कंठा तेरी,
क्या तू तर्जन से है डरती,
पन्ना-पन्ना स्नात प्रतीक्षित,
शान्त किवाड़ तू खोल आज कलम कुछ बोल,
व्यापाश्रय की छोड़ प्रतीक्षा आज कलम कुछ बोल
उद्दाम अभिव्यक्ति का भाव कहाँ है,
स्याही का कौमुदी कलश कहाँ है,
उत्फुल्लता का तूणीर कहाँ है,
विषय मंथन तू छोड़ आज कलम कुछ बोल,
व्यापाश्रय की छोड़ प्रतीक्षा आज कलम कुछ बोल
यौवन में अलिभय हो चाहे,
विरही का संताप हो चाहे,
जो भी वारित हो तेरे भीतर,
कर मुखर सभी,मत तौल आज कलम कुछ बोल,
व्यापाश्रय की छोड़ प्रतीक्षा आज कलम कुछ बोल,
व्यापाश्रय=विशेष आश्रय
विहान=सवेरा
तर्जन=डाट,उपेक्षा
स्नात=नहाया हुआ
उद्धाम=तीव्र
तूणीर=तरकश
अलि=भँवरा
वारित=छिपा हुआ
वाह बहुत सुन्दर रचना आपकी पढ़कर बहुत आनन्द आया और आपकी कलम युँही चलती रहेँ माता सरस्वती जी की कृपा आप पर हमेशा बनी रहे
ReplyDeleteraj kaushik ji bahut bahut thanx
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