Friday, October 7, 2011

बार बार ये क्यों होता है

........बार बार ये क्यों होता है........

बार बार यह क्यूँ होता है
मेरा मन विचलित क्यूँ होता है
प्रेम अगर सच्चा है मेरा
दोष तुम्हे यह क्यूँ देता है

इच्छायें करती हूँ तुझसे
चाहत की चाहत है तुझसे
सच है या फिर भ्रम है मेरा
के तुम बिछड रहे हो मुझसे

सुनती आई हूँ मै सबसे
निष्काम प्रेम में रब होता है
तथ्य बिसर यह क्यूँ जाता है
प्रेम सरल निर्मल होता है

याद करो इसको मन मेरे
प्रेम का अंकुर जब फूटा था
अपेक्षा का कोई भाव न था
देने का सुख ही स्वभाव था

प्रेम एक विस्तार भाव है
विधाता का इसमें प्रभाव है
सीमाबद्ध बनाकर इसको
प्रतिइच्छा की इच्छा कुभाव है

फिर आशीष मिले यदि तेरा
दिल में कोई आस न पालूं
तेरे दीप जले जो मन में
उस दीपक को हरदम बालूँ

तुम मेरे हो प्राणप्रिये
मेरा भी क्या है मेरा?
नहीं जानती विवश हो तुम
या बदला है मन तेरा

किन्तु सत्य मानो हे प्रिये
मै बिल्कुल पहले जैसी हूँ
अंतस से तुम देखो मुझको
मै भी तेरे जैसी हूँ

पथदर्शकहे ,मै अनुगामिनी तेरी
चंदा तुम मै लहर तेरी
उपकार तेरा इतना होगा
मनबद्ध रहो हे प्रीत मेरी

1 comment:

  1. soya mun kahin jaag raha..
    Soya pada tha aaj achanak bhaag raha,
    Kisi ney aaj mun ke andar aaj buwai kar dali,
    Supta ghantiyon key ninad sey aaj achanak jaag utha..Soya mun yeh jaag utha.

    Unmukta aur swachhanda mun ley, kahin aaj main tair aaoon,
    Saagar ki aviraam lahron mein gotey laga aaoon,
    Aasman ki oonchaiyon ko in dainon se naap paaaoon !!!
    Aaj chahta hai mun ki kahin yeh fir bhatak jaye.
    Jahan jaana chahey wahan ja apney abhishta to pa jaye.
    Baandh rakha tha abhi tak, achanak pash dheeley pad gaye..
    Mun sukomal bhavnaon ki lahron mein vyakul jhoom utha,
    Chhaliya ho ya rasiya ho, tum jo ho mere priyavar ho.
    Aatur hai mun aaj mera batlane antar vyatha...
    Pravah mera sambhal lena yeh bahega nirantar.
    Samvedna key do bol tumharey shanti detey har pal.....
    Meri is mook abhivyakti ko sweekar kar lena tum sakhey,
    Bahti dhara mein jyoon, ek dweep sikta hota nirantar,
    main tumhey aur tum mujhey seenchtey hardam rahein..
    Kishan

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