मेरी यादों में मत आना
तेरी यादों से जगता है मेरे मन का कोना कोना
मेरी यादों में मत आना
प्रभाती नव नवेली जब अपना घूंघट सरकती है,
लाली से अपनी धीरे-धीरे धरती का रूप सजती है,
निशि विछोह की पीर,प्रभा जब ओस रूप दिखलाती है,
तेरे यादों से आता है तब हृदय बिम्ब में रूप सलोना
मेरी यादों में मत आना
सागर में तिरते मोती को जब प्यासा मृग पी जाता है,
अपने अधरों से चूम चूम हंस, क्षीर-क्षीर पी जाता है,
नीले नैनो की बरसाते दिल को ढांप ले जाती है,
पीर हृदय को दे जाता है तेरी यादों का शूल चुभोना
मेरी यादों में मत आना
अम्बर के काँधे पर जब बदरी का कुन्तल होता है,
धीरे-धीरे अम्बर का गर्जन स्वनगुंजन सा लगता है,
लरज लरज अम्बर औ बदरी खुशहाली दरशाती है,
तुझसे ही लिपटा होता है भीतर का मेरे हर एक तराना
मेरी यादों में मत आना
कमलपत्र जब शबनम को अपने हाथों में लेता है,
सूर्यरश्मि से मुखड़ा उसका जुगनू की तरह चमकता है,
संदली बयार जब आस लिए अक्षि तृषित कर जाती है,
बिखर जाता है यादों का था जो अब तक बंद खजाना
मेरी यादों में मत आना
तेरी यादों से जगता है मेरे मन का कोना कोना
मेरी यादों में मत आना
आदर्शिनी
क्षीर=दूध
कुन्तल=गेसू
बिम्ब=आकृति
स्वन=शब्द
संदली बयार =सुगन्धित पवन
अक्षि=नयन
तृषित=प्यासा
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