ये सच है तपन पहले जैसी नहीं
किन्तु बदरी है जो हटती भी नहीं
है ज्वार सा उठता सुनामी कभी
धीमी लहरों की ठंडी थपक है कभी
रह रह के हृदय ढांप लेती है वो
आ जाती है फिर जल्दी छंटती नहीं
गोरे गोरे मुख पर ओढ़े एक चुनरिया झीनी सी
तनिक छुपे फिर तनिक दिखाए जब उड़े चुनरिया झीनी सी
श्वेत मेघ से तन को ढांपे,श्याम मेघ से रूप छिपाए
नभ पर खूब सजे तू सजनी,कुछ बरसा बदरिया झीनी सी
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