Thursday, September 15, 2011

तुम ही प्यासे के लिए हो जल

निमित्त हेतु समझ कर जब सामग्री हाथ थमा दी है,
सत्संग दिया, सद्ग्रंथ दिया,भगवन्नाम की आस जगा दी है,
अब जन्म मरण के बंधन से वो आप हमें ही तारेंगे
वह खुद समझे उद्धार मेरा जगतट पर जब नाव लगा दी है,
पूर्व जन्म के पुण्य ही है जो प्रभु की ओर चला है मन
प्रभुनाम का आश्रय लेकर ही कल्याण की राह चला है मन,
अब विषय भोग के संग्रह में हमको कुछ भी क्या लेना है,
अनित्य होकर भी दुर्लभ जो जीवन है,सेवा की राह चला है मन,

तुम ही प्यासे के लिए हो जल,तुम ही भूखे के लिए हो अन्न,
विषयी हेतु बनकर आए तुम रूप,रस,शब्द,स्पर्श,गंध,
प्रभव हो तुम, प्रलय हो तुम,औदार्य और माधुर्य हो तुम,
किन्तु मानव को चेताने हेतु दु:ख भी लाए तुम सुख के संग

निमित्त=कर्ता,करने वाला
प्रभव् =उत्पन्न करने वाला
औदार्य=उदार
माधुर्य=प्रेम
मृन्मय=मिटटी से बना पात्र

1 comment:

  1. बहोत सुन्दर...आदर्शिनी जी!अद्भुत शब्द संयोजन!

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