पाहुन आज हुआ मौसम
वसुधा मन को भाई है
धड़कने ताल देती हैं बँसुरिया गुनगुनाई है
विहँस
उट्ठी धरा पर
मखमली पराग का अंचल
भ्रमर के मन में ललकन
तितलियों के पंख हैं चंचल
प्रकृति
की अधमुँदी पलकों में मदिरा छलछलाई है
बंदनवार
घन के झूलते
अम्बर दुअरिया पर
सितारे
जड़ रहे कुंदन
रूपसी की चुनरिया पर
गगन
में आतिशें छूटी दिशाएँ झिलमिलाई हैं
मंत्रित
जल फुहारों की
डोली नभ से आई है
भरी
जब माँग जुगनू ने
पुलक उर ने मचाई है
मुख को ढाँप करतल से दुल्हनिया मुस्कराई है
अतिशे =आकाश के प्रकाश तत्व
भ्रमर = दूल्हा ( मौसम )
पुलक उर ने मचाई है
मुख को ढाँप करतल से दुल्हनिया मुस्कराई है
अतिशे =आकाश के प्रकाश तत्व
भ्रमर = दूल्हा ( मौसम )
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