Sunday, August 7, 2016

नेताओं के अजीब अजीब बयानों पर

बहुत कठोर मगर कहती हूँ
विश्व मरणासन्न है, भारती को दम धुट गया
रक्षकों विश्वास मेरा लुट गया
प्रेमिका के दर्द से शाप देने वाले 
नलकूबर कहाँ हैं ? कौन हैं?
ब्रह्मा पुन्जक्स्त्सला पर 
अत्याचार होते देखकर भी क्यों मौन हैं?
दोष किसको दें? कौन जिम्मेदार है ?
गर्म लावा पीते परिजन
अर्थी उठाते कहार हैं l
सब एक थाली के हैं चट्टे पट्टे
कुछ मुँहचोर तो कुछ हैं मुँह फट्टे
नहीं रोकेंगे ये किसी को
इंतज़ार में हैं उसी आग में खुद भी जलने को
बनते हैं भोले, भविष्य से अनजान हैं
बेपरवाह इस भय से मुक्त कि
गली गली हो सकता है बुलंदशहर , बरेली, दिल्ली 
और उस शहर में कोई हो सकता है हमारा अपना भी
सड़क के शोर में दफ़न होती आवाज़ के साथ......
सत्य छुपाते लोग, ओज के रोग से पीड़ित मूक कविलोग
चिल्लाते हैं देश-किसान-सरहद-तिरंगा
क्या नहीं दिखता किसी मजबूर का देंह नंगा ?
जीत लो विश्व पर घर में हार रहे हो
विरोध करो, आवाज़ उठाओ
क्यों आत्मा मार रहे हो ?
दे दो दोष परिवर्तित नारी को क्योंकि
वही बढ़ा रही है आतंकवाद-नक्सलवाद
वही करा रही है सीमा पर गोली बारी
वही करा रही है चोरी-ठगी की वारदातें
वही करा रही है साम्प्रदायिक दंगे
उसी के कारण रोकी गईं हैं ट्रेने
फूँकी गईं हैं बसें, हाईजैक हुए हैं विमान
वही करा रही है संसद में कुर्सियों की उठा पटक
उसी के कारण हो रहे सत्र शून्य
उसी के कारण देखें गएँ हैं
आई हेट इण्डिया के बैनर
विश्व की सम्पूर्ण गालियों की उत्पत्तिकर्ता है वो
दोषी है.... वो उसे मार डालो....
भ्रूण में, दहेज़ मेंचिता में, तंदूर में, तेज़ाब से, आक्षेपों से ,
जितना कुछ दुर्गठित है उसी के कारण तो है .........
दोषी है वो दो साल की बच्ची
जो नहीं जानती कपड़ों का महत्त्व,.....
दोषी है वो सात साल की बच्ची
जिसने दो पैरों वाले जानवर अभी अभी देखें हैं,.....
दोषी है वो घर में चाय बनाती हुई चौदह वर्षीया बाला  
जो घर में घुसे लोगों से घसीट कर लाई गई है किचन से......
दोषी है गाँव की वो बीस वर्षीय अध्यापिका
जो सूती दुपट्टा से तन ढाँके
जा रही थी बच्चों को संस्कारित करने,.......
दोषी है साड़ी में लिपटी पचास वर्षीया प्रौढ़ा जो  
गृहस्थी के सामान के लिए जा रही थी बाज़ार,.......
दोषी है वो साठ वर्षीया वृद्धा
जिसके पीछे नाचतीं थी दो पीढियाँ
पर हार गई द्विपदीय कुत्तों से.......
हर एक घटना पर दोषी है वो .....
दोषी है वो ..... दोषी है वो ......
मत जागो तुम !
तो लो, अब नहीं रुकेगा ये पागल नर्तन
जब धर्म रो रहा है न्याय पड़ा सो रहा है
पातक प्रचण्ड से प्रचण्ड होता जा रहा है.......
पर तुम्हे नहीं दिखता किसी भी साईट पर
उत्तेजक अभद्र स्थिर, चलित विज्ञापन ?
लोभी हो तुम, नहीं रोकोगे इसे
क्योंकि विज्ञापनों के धन से बढ़ाते हो अपने ऐश्वर्य,....
बनाते हो रोगी हर उम्र की मानसिकता को,
अंधे, गूँगे, बहरे लोगों मुँह खोलो
बोलो, विरोध करो, दण्डित करो  .....
फाँसी दो , दाग दो गर्म लोहे से
उन अमानुषिकों को , कर दो चिह्नित कि
यही वो आदमखोर हैं यही हैं आदमखोर
पर तुम ये नहीं कर सकते , अधकचरे जो हो.....
इसके लिए चाहिए लौह मन और निर्लिप्त आत्मबल
पर अगस्त के अखबार में पन्द्रह दिन नित्य छपते
इस वाक्य को होठों पर लाते तनिक शर्म मत करना
माँ तुझे प्रणाम..... माँ तुझे प्रणाम.... माँ तुझे प्रणाम    


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