Saturday, July 2, 2016

गीत .... झील सी गहरी आँखों में

सागर सी गहरी आँखों में जो डूबा न उतराया
मधुशाला सी मदिरा सा इन नैनों को जब छलकाया
जो डूबा न उतराया

खंजन भी क्या इनके सम्मुख
आकर नयन मिला पायें
झीलों पर स्पंदित पलकें
अलि के जैसी इठलायें
अलसाई नैनों के मद से मदिरालय भी बौराया
जो डूबा न उतराया

मन में उठते भावों का
हों दरपन जैसे ये आँखें
अनगिन सुप्त विचारों का
आवेदन जैसे ये आँखें
नैनों से बातें करने का हुनर कहाँ तूने पाया
जो डूबा न उतराया


मिलने वाले नैना इनसे
भूल झपकाना जाते हैं
उनके नैना मधुकर बनकर
ललचायें मंडराते हैं
लोचन कानन में जो उलझा फिर वो कहाँ सुलझ पाया
जो डूबा न उतराया

शांत निमीलित लोचन हों तो
सोई-सोई साँझ लगे
चंचल-चपल अगर चितवन हो
प्राची अरुण प्रभात जगे
सुबहा और साँझ का ढलना इन नैनों की है माया
जो डूबा न उतराया
....आदर्शिनी श्रीवास्तव .....






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