राह दिखा खो मत जाना,
सुधियों के आँगन से प्रियतम!
यूँ सहज नहीं उठ कर जाना,
विस्मृत कर तुम्हें भला
संभव है कैसे राह पाना,
मीन सिंधु से विरत रहे
क्या रुचता है ये कह पाना?
विश्वासों के सुमन खिलाकर
बगिया कर रीती मत जाना,
स्मृतियों के चौबारे से
यूँ सहज नहीं उठकर जाना,
No comments:
Post a Comment