क्यूँ रोते हो जीवन का रोना, क्यूँ भरते हो इतना दर्द,
दुःख के निर्मल सागर में सीपी और सजा करते,
गीत लिखो जो हंसी बिखेरे
टीस परे हट जाने दो,
मिले जो आगे दुलार उसे लो,
रो रो नहीं जिया करते ,
कुछ ही समय बही थी नदियाँ अश्रु नयन के सूख गए,
गीली-गीली आँखे रख कर जीवन नहीं जिया करते,
कई बार बिखरी थी कड़ियाँ,
फिर जोड़ा है तुमने ही,
जीवनपथ पर हार न मानो,
यूँ ही लोग बढा करते,
बिखरना हो मोती बिखराओ, अपने से टूटे रस्तो पर,
प्रेमिल वही जो बिखरा मुस्काने मोती नहीं गिना करते,
तुमने उतना दिया नहीं,
जितना संतोष मिला है तुम्हे,
दुःख ले मिसरी देने वाले,
सुख को नहीं छिपा सकते,
तुम हो आज जहाँ पर स्थित कल कोई और रुका होगा,
कलेवर बदला करते हैं, पर मानव वही रहा करते,
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